गीत हिंदी साहित्य की एक बहुत ही कोमल विधा है।इसमें रचनाकार किसी एक विषय को लेकर बहुत ही श्रेष्ठशब्द चयन के द्वारा गीत के शिल्प का निर्वहन करते हुए कलात्मक अभिव्यक्ति करता है। गीत अनेक प्रकार के हो सकते हैं यथा शृंगार के विरह और मिलन गीत,लोक गीत आदि।समय के साथ गीत का विकास हुआ तो नवगीत अस्तित्व में आया।नवगीत में व्यंजना के साथ-साथ प्रतीकों और बिंबों का बहुत महत्व होता है।
कुछ समय पूर्व सर्दी को लेकर एक नवगीत का सृजन हुआ था जो आप सुधी जनों को अदालत में हाज़िर है :
आज एक नवगीत : सर्दी के नाम
*************************
-- ©️ओंकार सिंह विवेक
छत पर आकर बैठ गई है,
अलसाई-सी धूप।
सर्द हवा खिड़की से आकर,
मचा रही है शोर।
काँप रहा थर-थर कुहरे के,
डर से प्रतिपल भोर।
दाँत बजाते घूम रहे हैं,
काका रामसरूप।
अम्मा देखो कितनी जल्दी,
आज गई हैं जाग।
चौके में बैठी सरसों का,
घोट रही हैं साग।
दादी छत पर ले आई हैं,
नाज फटकने सूप।
आए थे पानी पीने को,
चलकर मीलों-मील।
देखा तो जाड़े के मारे,
जमी हुई थी झील।
करते भी क्या,लौट पड़े फिर,
प्यासे वन के भूप।
--- ©️ओंकार सिंह विवेक
अत्यंत सुन्दर नवगीत.
ReplyDeleteआदरणीया हार्दिक आभारी हूं आपका
Deleteवाह आदरणीय
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 30 जून 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
हार्दिक आभार,ज़रूर हाज़िर रहूंगा
Deleteबहुत सुंदर नवगीत !!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteबहुत सुंदर नवगीत ।
ReplyDeleteजी शुक्रिया 🙏🙏
Deleteवाह!बहुत खूब।
ReplyDeleteअतिशय आभार
Deleteबहुत सुंदर नवगीत।
ReplyDeleteHardik aabhar aapka
Deleteबहुत सुंदर लाजबाव अभिव्यक्ति
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteअत्यधिक आभार
Delete