January 6, 2022

कुंडलिया : सर्दी के नाम

कुंडलिया 
******
        ----ओंकार सिंह विवेक
सर्दी  से   यह  ज़िंदगी , जंग   रही  है  हार,
हे भगवन! अब  धूप का,खोलो  थोड़ा द्वार।
खोलो   थोड़ा   द्वार,  ठिठुरते  हैं   नर-नारी,
जाने  कैसी  ठंड , जमी  हैं   नदियाँ  सारी।
बैठे  हैं  सब  लोग ,पहन   कर   ऊनी  वर्दी,
फिर भी रही न छोड़,बदन को  निष्ठुर सर्दी।
           ---ओंकार सिंह विवेक
चित्र--गूगल से साभार
चित्र--गूगल से साभार

2 comments:

Featured Post

पुस्तक परिचय : गद्य पुस्तक 'उड़ती पतंग'

              गद्य पुस्तक : 'उड़ती पतंग'              कृतिकार : दीपक गोस्वामी 'चिराग़'               प्रकाशक : ड...