June 24, 2022

जो ग़ज़लों को रवानी दे रही है

दोस्तो शुभ प्रभात/प्रणाम/नमस्कार🌹🌹🙏🙏

यह मेरे लिए गर्व की बात है की मुझे हर दिन ही कविता या शायरी के बहाने अपने दिल की बात आप तक पहुंचाने का अवसर प्राप्त हो जाता है।आप जैसे सुधी पाठकों, बुद्धिजीवियों और मूर्धन्य साहित्यकारों से रूबरू होने का एक फ़ायदा यह भी होता है कि इससे मेरी रचना की इस्लाह/जांच-परख भी हो जाती है और अपने जज़्बात का इज़हार करने का मौक़ा भी मिल जाता है।
जीवन और समाज से आत्मसात किए गए खट्टे-मीठे अनुभवों की एक झांकी ग़ज़ल के रूप में आप अब के संमुख प्रस्तुत कर रहा हूं।उम्मीद है कि आपको पसंद आएगी ---

ग़ज़ल***ओंकार सिंह विवेक
©️ 
अगर  कुछ   सरगिरानी  दे  रही है,
ख़ुशी   भी  ज़िंदगानी  दे   रही  है।

चलो  मस्ती  करें , ख़ुशियाँ  मनाएँ,
सदा  ये   ऋतु   सुहानी  दे  रही है।

बुढ़ापे  की   है  दस्तक  होने वाली,
ख़बर  ढलती  जवानी  दे   रही  है।

गुज़र आराम  से  हो  पाये , इतना-
कहाँ  खेती-किसानी   दे   रही  है।

फलें-फूलें न क्यों नफ़रत  की  बेलें,
सियासत  खाद-पानी   दे  रही  है।

सदा  सच्चाई  के  रस्ते  पे  चलना,
सबक़ बच्चों  को  नानी  दे रही है।

तख़य्युल की है बस परवाज़ ये तो,
जो  ग़ज़लों  को  रवानी दे  रही है।  
     ---©️ ओंकार सिंह विवेक

5 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (25-06-2022) को चर्चा मंच     "गुटबन्दी के मन्त्र"   (चर्चा अंक-4471)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    

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    Replies
    1. हार्दिक आभार मान्यवर🙏🙏🌹🌹

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  2. बेहतरीन सृजन।
    सादर

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  3. बहुत सुंदर रचनाएँ मिल रहीं हैं आपकी,बहुत बहुत बधाई

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