किसी त्योहार के आने का मतलब
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---ओंकार सिंह विवेक
त्योहारों का सीजन चल रहा है।कुछ त्योहार निकल चुके हैं कुछ प्रमुख त्योहार जैसे दीपावली और कार्तिक पूर्णिमा(गंगा स्नान ) आदि नज़दीक हैं।त्योहारी मौसम में एक तरफ तमाम तरह की व्यवसायिक गतिविधियाँ/हलचलें बढ़ती हैं तो दूसरी ओर मानव और प्रकृति के स्वभाव में भी परिवर्तन देखने को मिलता है जिसे अस्वभाविक भी नहीं कहा जा सकता।समाज के अलग-अलग वर्गों के लिए त्योहारों के अलग-अलग महत्व और उपयोग दिखाई देते हैं।
त्योहारों की दस्तक होते ही धनी वर्ग के घरों में कुछ अलग ही तरह की रौनक़ देखने को मिलती है।हफ़्तों पहले से ही धनी वर्ग के बच्चे और अन्य परिजन योजना बनाना शुरू कर देते हैं कि उन्हें क्या पहनना है,घर में कौन -कौन से व्यंजन बनने हैं ,किन -किन मेहमानों और दोस्तों को आमंत्रित करना है वगैरह वगैरह--।ऐसे घरों में चूँकि कोई आर्थिक विपन्नता नहीं होती अतः वहाँ एक छुट्टी और मौज मस्ती का माहौल त्योहारों के अवसर पर बन जाता है।दूसरी और निर्धन वर्ग की चिंता इस अवसर पर बढ़ जाती है।अभाव के कारण उस वर्ग के पास त्योहार पर नए कपड़ों या पकवानों के लिए इतने संसाधन नहीं होते कि वे त्योहारों का आनंद उठा सकें।त्योहारों के दौरान उन्हें और ज़्यादा महनत करनी पड़ती है ताकि त्योहार मनाने हेतु कुछ ज़्यादा संसाधन जुटा सकें।
त्योहार के अवसर पर जब धनी वर्ग की मौज -मस्ती बढ़ती है तो मज़दूर और छोटा तबक़ा इस बात से ख़ुश होता है कि इस दौरान अमीरों की ख़रीदारी बढ़ने के कारण उन्हें और अधिक काम करने का मौक़ा मिलेगा जिससे कुछ अतिरिक्त आमदनी का जुगाड़ हो सकेगा।आम आदमी और मज़दूर तबक़ा त्योहारों के अवसर पर मज़दूरी और काम के अवसर तलाशता है जबकि अमीर तबक़ा मस्ती और आनंद के अवसर के रूप में त्योहार को देखता है।
हैं न कैसी विडंबना कि एक ही ईवेंट या घटना का समाज के अलग- अलग तबक़ों पर अलग -अलग असर देखने को मिलता है।
--ओंकार सिंह विवेक
त्योहार सभी के लिये ख़ुशी लाते हैं
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