कवि/रचनाकार आम आदमी से भिन्न दृष्टि से चीज़ों/घटनाओं को देखता है और उसे अपनी रचनाओं में ऐसे नज़रिए से पेश करता है कि सामने वाला आह या वाह करने को विवश हो जाता है।मानवीय संवेदनाओं के गिरते स्तर और प्रकृति के साथ मानव के अतिरेकी व्यवहार को लेकर दो दोहे हुए जो आपकी प्रतिक्रिया के लिए सादर प्रस्तुत हैं।
आज के दोहे
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जंगल नदी पहाड़ को, करता रहा निढाल।
ले अब तू भी देख ले,मानव अपना हाल।।
रोने की हो बात तो,हँस पड़ते हैं लोग।
किस सीमा तक बढ़ गए,आज मानसिक रोग।।
©️ओंकार सिंह विवेक
बेहतरीन दोहे
ReplyDeleteआभार आदरणीया 🙏
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