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कुछ घटनाओं और परिस्थितियों को देकर जैसा चिंतन किया उसे दोहों में ढालकर आपकी अदालत में पेश कर रहा हूँ, प्रतिक्रिया अवश्य दीजिए 🙏
जो सूरज प्रतिदिन यहाँ, उगल रहा था आग।
उमड़े बादल देखकर,गया अचानक भाग।।
क्या दिन थे जब गाँव में,बरगद पीपल नीम।
होते थे सबके लिए,घर के वैद्य-हकीम।।
©️ ओंकार सिंह विवेक
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