March 26, 2025

हर दिन कुछ नया सृजन

अभी दो दिन पहले एक छोटी  बहर की ग़ज़ल प्रस्तुत की थी।आप सभी का बहुत स्नेह प्राप्त हुआ उस पर,उसके लिए हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।अक्सर ऐसा होता है कि जब किसी एक बहर पर ज़ेहन बन जाता है तो उस पर लगातार कई ग़ज़लें हो जाती हैं। सो उसी बहर और रदीफ़- क़ाफ़ियों में चंद अशआर और हो गए जो आपकी ख़िदमत में पेश हैं :
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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दिल ग़म  का आभारी है,
इसने  ज़ीस्त  निखारी है।

ऊँचे  लाभ  की   सोचेगा,
आख़िर  वो  व्यापारी  है।

दो  पद, दो  सौ  आवेदन,
किस  दर्जा   बे-कारी  है।

स्वाद  बताता  है  इसका,
माँ   ने   दाल  बघारी  है।

काहे   के   वो    संन्यासी, 
मन    पूरा    संसारी    है।

चख  लेता है  मीट  कभी,
वैसे       शाकाहारी     है।

उससे कुछ बचकर रहना,
वो    जो   खद्दरधारी   है।
©️ ओंकार सिंह विवेक

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