नए साल से उम्मीद बाँधे हुए एक ग़ज़ल
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-- ओंकार सिंह विवेक
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जहाँ में हर इक शख़्स ख़ुशहाल होगा,
तवक़्क़ो है अच्छा नया साल होगा।
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मुहब्बत के हर सू परिंदे उड़ेंगे,
कहीं नफ़रतों का न अब जाल होगा।
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बढ़ेगी न केवल अमीरों की दौलत,
ग़रीबों का तबक़ा भी ख़ुशहाल होगा।
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सुगम होंगी सबके ही जीवन की राहें,
न भारी किसी पर नया साल होगा।
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सलामत रहेगी उजाले की हस्ती,
अँधेरा जहाँ भी है पामाल होगा।
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उठाएँगे ज़िल्लत यहाँ झूठ वाले,
बुलंदी पे सच्चों का इक़बाल होगा।
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न होगा फ़क़त फ़ाइलों-काग़ज़ों में,
हक़ीक़त में भी मुल्क ख़ुशहाल होगा।
---©️ ओंकार सिंह विवेक
रामपुर-उoप्रo
Behatreen, badhai
ReplyDeleteHardik aabhar
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