नमस्कार दोस्तो 🌹🌹🙏🙏
हाज़िर है मेरे प्रस्तावित ग़ज़ल-संग्रह "कुछ मीठा कुछ खारा" से आज एक और ग़ज़ल
*********************************************
©️
एक तो मंदा ये कारोबार का,
और उस पर क़र्ज़ साहूकार का।
मान लो हज़रत ! तवाज़ुन के बिना,
है नहीं कुछ फ़ाइदा रफ़्तार का।
आजकल देता हो जो सच्ची ख़बर,
नाम बतलाएँ किसी अख़बार का।
जंग क्या जीतेंगे सोचो , वो जिन्हें-
जंग से पहले ही डर हो हार का।
फिर किनारे तोड़ने पर तुल गई,
क्या 'अमल है ये नदी की धार का?
तोड़ दी इसने तो मुफ़लिस की कमर,
कुछ करें महँगाई की रफ़्तार का।
ऋण चुका सकता नहीं कोई 'विवेक',
उम्र भर माँ - बाप के उपकार का।
--- ©️ ओंकार सिंह विवेक
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 14 अगस्त 2024को साझा की गयी है....... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार आपका।
Deleteवाह!
ReplyDeleteआभार
Deleteबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका।
Deleteबेहतरीन शायरी
ReplyDeleteअतिशय आभार आपका।
Delete