August 28, 2022

संवेदनहीनता की पराकाष्ठा !!!!!!

शुभ प्रभात मित्रो 🌹🌹🙏🙏
 प्रात: कल जब नाश्ता करते समय अख़बार खोला तो इन दो हैड लाइंस ने दिल को झकझोर कर रख दिया :

"बच्चा चुप नहीं हुआ तो मां ने हाईवे पर फेंका,कुचलकर मौत"
"संतान के लिए मासूम के किए टुकड़े, ख़ून भी पी गई चाची"
                 (दैनिक जागरण दिनांक २७ अगस्त,२०२२)

इन ख़बरों को विस्तार से पढ़ा तो ढंग से नाश्ता भी नहीं कर सका और कुछ देर के लिए शांत मुद्रा में बैठ गया। निश्चित तौर पर आप में से भी कई साथियों ने ये समाचार पढ़े होंगे और मेरी ही तरह व्यथित भी हुए होंगे।
यों तो दयालुता, निर्दयता और कठोरता आदि मानव स्वभाव के अंग कहे जा सकते हैं परंतु कोई इस हद तक संवेदनहीन हो जाएगा और वह भी एक स्त्री जो सृष्टि की जन्मदात्री है,जो नौ महीने अपनी कोख में संतान को पालती है और प्रसव के समय की कठिनतम पीड़ा को झेलती है ,इतनी निष्ठुर और निर्दयी हो जायेगी इस बात को स्वीकारते समय मन बहुत असहज हो जाता है।
बच्चों के साथ क्रूरता की ये दो घटनाएँ तेजी से उग्र और  असहनशील होते जा रहे मानव स्वभाव की और इशारा करती हैं।इसके लिए बहुत से कारक ज़िम्मेदार हो सकते हैं।व्यक्ति विशेष की अपनी प्रकृति,पारिवारिक परिवेश और सामाजिक मान्यताएं, अंधविश्वास और रूढ़िवादिता --- आदि आदि।
हम सब जानते हैं कि क्रोध की अतिरेकता व्यक्ति को अंधा तो करती ही है साथ में उसकी सही-ग़लत का निर्णय लेने की क्षमता को भी नष्ट कर देती है।पहली घटना में यही हुआ होगा। जब बच्चे के बार-बार रोने और फिर चुप न होने के कारण मां पर हावी हुए क्रोध के शैतान ने उससे उसका विवेक और बुद्धि छीन ली होगी और उसने अपने बच्चे को सड़क पर फेंकने जैसे अमानवीय कृत्य को अंजाम दिया होगा। जब तक उसके सिर से क्रोध का शैतान उतरा तब तक सब कुछ ख़त्म हो चुका था। हर्ष और विषाद की तरह ही क्रोध भी मानव स्वभाव का एक लक्षण है । हां, यह किसी में कम और किसी व्यक्ति में अधिक हो सकता है।अत्यधिक क्रोध करने वाले लोगों के लिए मनोचिकित्सक की काउंसलिंग,पारिवारिक सहयोग और ऐसे ही अन्य उपाय बहुत कारगर साबित होते हैं। अत्यधिक क्रोध में आए व्यक्ति को यदि तत्काल किसी धीर-गंभीर और धैर्य-संयम वाले व्यक्ति का साथ मिल जाता है तो कई बार स्थितियां काफ़ी भिन्न भी हो जाती हैं। सहनशील,संवेदनशील और धैर्यवान व्यक्ति अक्सर उस मानसिक विकृति के शिकार व्यक्ति को समय रहते विपत्ति/दुर्घटना से बचा भी लेता है। अत: घर परिवार और समाज का रोल इसमें बहुत महत्व रखता है।इस बारे में हम सब को गंभीरता से चिंतन करने की आवश्यकता है।
चित्र : गूगल से साभार 

दूसरी घटना में सामाजिक,पारिवारिक परिवेश तथा रूढ़िवादिता,अशिक्षा और अंधविश्वास का भी बड़ा योगदान कहा जा सकता है।घटना को अंजाम देने वाली स्त्री की कई संतानों की जन्म के कुछ समय बाद मृत्यु हो चुकी थी इस कारण वह तांत्रिकों के चक्कर में पड़कर पुन: संतान प्राप्ति हेतु ऐसा अमानवीय  कृत्य कर बैठी।यों तो कहीं-कहीं शहरों में भी तंत्र विद्या के फेर में पड़ने वालों की खबरें कभी-कभार पढ़ने को मिल जाती हैं परंतु ऐसी घटनाएं अक्सर अशिक्षित ग्रामीण वर्ग में अधिक देखने में आती हैं।इसके लिए अशिक्षा और वहां का माहौल बहुत अधिक ज़िम्मेदार कहा जा सकता है।कई ग्रामीण क्षेत्रों में अभी तक भी किसी असाध्य बीमारी आदि को दैवीय प्रकोप मानकर चमत्कार की आशा में तांत्रिकों वगैरह का सहारा लेने में लोग विश्वास रखते हैं जो दिमागी दिवालियेपन की निशानी ही कही जाएगी। जब किसी घर में किसी अप्रिय घटना या विपत्ति के समय कोई सदस्य  तांत्रिक/ओझा आदि को बुलाकर समस्या के समाधान हेतु उसके द्वारा सुझाए गए अतार्किक औरअव्यवहारिक उपायों का सहारा लेता है तो परिवार के अन्य सदस्य भी इसका संज्ञान लेते हैं। परिवार के अन्य सदस्य भी इन चीजों को सही समझने लगते हैं और वे भी किसी मुक़ाम पर इन तांत्रिकों आदि  का सहारा लेते हैं जिसका परिणाम यहां उल्लिखित दूसरी  घटना जैसा ही होता है।
इस दिशा में घर-परिवार ,समाज और शासन-प्रशासन सभी को गंभीर चिंतन करके ठोस कदम उठाने की ज़रूरत है।
लोगों को शिक्षा के प्रति जागरूक किया जाए और उनके मानसिक स्वास्थ्य को जांचने का प्रबंध तथा सुधारात्मक उपाय भी शासन स्तर से किए जाएं।समाज में व्याप्त इन कुरीतियों के विरोध के लिए अभियान चलाकर व्यापक जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है।यदि व्यक्ति शिक्षित होगा और उसका मानसिक स्वास्थ्य ठीक होगा तो वह किसी भी दशा में तांत्रिकों आदि के चक्कर में पड़कर अपना और अपने परिवार का  बुरा नहीं करेगा।

चित्र : गूगल से साभार 

प्रस्तुति : ओंकार सिंह विवेक

16 comments:

  1. Replies
    1. बेहद शुक्रिया 🙏🙏🌹🌹

      Delete
  2. आपकी लिखी रचना सोमवार 29 अगस्त 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीया।ज़रूर हाज़िर रहूंगा।

      Delete
  3. पहले केस में प्रतीत होता है कि महिला विक्षिप्त होगी क्योंकि कितना भी क्रोध हो माँ ऐसा नहीं कर सकती । दूसरे केस में तो क्या कहें अंधविश्वास आदमी को अंधा कर देता है …बढ़िया आलेख ।

    ReplyDelete
  4. ज्ञानवर्धक आलेख। बधाई आपको।

    ReplyDelete
    Replies
    1. अतिशय आभार आपका 🌹🌹🙏🙏

      Delete
  5. सचमुच संवेदनशून्यता के इस दौर में ऐसी निर्मम घटनाएं मानवता पर बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह हैं

    ReplyDelete
  6. स्त्री करुणा और वात्सल्य भाव के लिए जानी जाती है ।परंतु आज समाज में क्या कुछ ही देखने सुनने को मिल जय कुछ कह नहीं सकते ।
    बहुत ही चिंतनपूर्ण विषय पर आलेख ।

    ReplyDelete
  7. मानसिक विकृति बहुत बढ़ रही है आजकल और कोई मानसिक बीमारी को मानते भी नहीं उसके लिए भी तंत्र मंत्र भूत प्रेत झाड़ फूँक का ही सहारा लेते है ।
    बहुत ही विचारणीय लेख ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. अतिशय आभार। सही कहा आपने आदरणीया 🙏🙏

      Delete

Featured Post

होली के नव रंग : कुछ दोहों के संग

प्रणाम मित्रो 🌹🌹🙏🙏 आप सभी को रंगोत्सव होली की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं। मन फाग गाने को आतुर है,रंगों की धनक सबको आकर्षित कर रही है।गुज...