गद्य पुस्तक : 'उड़ती पतंग'
कृतिकार : दीपक गोस्वामी 'चिराग़'
प्रकाशक : डायमंड बुक्स, नई दिल्ली
प्रकाशन वर्ष : 2025 मूल्य : रुo 150/
परिचय प्रदाता : ओंकार सिंह 'विवेक'
साहित्यकार और शिक्षक दीपक गोस्वामी चिराग़ ने काव्य के साथ-साथ गद्य विधा में भी अपनी ऊँची उड़ान का परिचय देते हुए 'उड़ती पतंग' पुस्तक का सृजन किया है।पुस्तक को पढ़कर इसके सार को जितना में समझ पाया वह आपके साथ साझा करना चाहता हूँ ताकि इस उपयोगी पुस्तक को पढ़ने के प्रति आपकी रुचि जागृत हो।
'उड़ती पतंग' जैसे रोचक शीर्षक वाली यह पुस्तक पाठक को धीरे-धीरे चिंतन की गहराई में उतार देती है।जब हम पतंग को आसमान में उड़ते हुए देखते हैं तो एक ओर वह अपने उन्मुक्त रूप से उड़ने का एहसास कराती है वहीं दूसरी ओर पतंग में बँधी हुई डोर पतंग को अनुशासन में रखने का कार्य करती है।यदि पतंग के उड़ने की स्वतंत्रता को डोर अनुशासन में न रखे तो पतंग आसमान में कदापि इतनी ऊँची न उड़ पाए।यही बात हमारे जीवन पर भी लागू होती है- व्यक्ति की जीवन रूपी पतंग भी यदि सामाजिक अनुशासन की सीमाओं में रहकर उड़ान भरे तभी उसकी उड़ान को सफल और सार्थक कहा जाएगा।लेखक ने 'उड़ती पतंग' के माध्यम से जीवन में स्वतंत्रता और अनुशासन के महत्व और उनके सामंजस्य को बड़े ही सहज और सुंदर ढंग से समझाया है। स्वतंत्रता क्या है और कब यह स्वछंदता का रूप ले लेती है, अनुशासन क्या है और अनुशासनहीनता की समस्या कैसे उत्पन्न होती है, इन सब बातों पर लेखक ने अपने अध्ययन और व्यवहारिक अनुभव के आधार पर विस्तार से प्रकाश डाला है।जीवन के लिए महत्वपूर्ण स्वतंत्रता और अनुशासन जैसे विषयों का विश्लेषण करते हुए पुस्तक में एक ओर तमाम पाश्चात्य दार्शनिकों जैसे एडम,रूसो और प्लेटो आदि को उद्धृत किया गया है तो दूसरी ओर भारतीय सभ्यता, संस्कृति और धार्मिक आस्थाओं के गौरव पतंजलि योग दर्शन,जैन दर्शन,बौद्ध दर्शन,श्रीमद्भागवत गीता तथा रामचरितमानस को उद्धृत करते हुए लेखक ने जीवन में स्वतंत्रता एवं अनुशासन के समन्वय पर बल दिया है। बीच-बीच में प्रेरक कथाओं तथा कविताओं के माध्यम से भी स्वतंत्रता और अनुशासन के बीच सामंजस्य की महत्ता को बड़े ही रोचक ढंग से समझाने का सार्थक प्रयास किया गया है। लेखक ने उदाहरण द्वारा बताया है की स्वतंत्रता प्राप्त करना मनुष्य की जन्मजात प्रवृत्ति है परंतु स्वतंत्रता की इस प्रवृत्ति को स्वच्छंदता में परिवर्तित होने से रोकने के लिए किस तरह अनुशासन की भावना का विकास किया जाना चाहिए इस पर भी प्रकाश डाला है। पुस्तक के लेखक दीपक गोस्वामी स्वयं एक शिक्षक हैं अतः वह भली भांति जानते हैं कि आज के विद्यार्थी ही कल के सजग राष्ट्रप्रहरी बनने वाले हैं अतः यह पुस्तक उन्होंने विद्यार्थी वर्ग में किस प्रकार स्वतंत्रता और अनुशासन की भावना का विकास हो, किस तरह इन दोनों में समन्वय स्थापित हो, इन विषयों पर ध्यान केंद्रित करते हुए ही लिखी है। पुस्तक के बाहरी पृष्ठ पर बने चित्रों तथा इसके शीर्षक 'उड़ती पतंग' से इसे विशुद्ध बाल साहित्य की पुस्तक समझने की भूल न की जाए। यह पुस्तक पढ़ना अध्यापकों एवं अभिभावकों के लिए भी बहुत आवश्यक है ताकि पहले वे स्वयं स्वतंत्रता,अनुशासन एवं इन दोनों के बीच समन्वय के सिद्धांतों को आत्मसात करके बच्चों को उसकी शिक्षा दे सकें।
पुस्तक के उपसंहार में लेखक ने निष्कर्षतय: यही कहा है कि स्वतंत्रता तथा अनुशासन छात्र रूपी पतंग के लिए मुक्त आकाश और डोर की तरह हैं जिसमें एक के बिना दूसरा महत्वहीन है।अतः इन दोनों में तारतम्य बहुत आवश्यक है। अंत में लेखक ने उच्च नैतिक व सामाजिक मूल्यों की सीख देने वाले धर्म ग्रंथ रामचरितमानस को स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल करने की पैरवी की है जो आज के दौर में नितांत आवश्यक भी है।लेखक ने विषय पर पूर्व प्रतिपादित सिद्धांतों को अपने चिंतन के आधार पर बहुत सरल भाषा में उदाहरणों सहित उद्धृत किया है।यह पुस्तक निश्चित ही पाठकों को अपने जीवन में स्वतंत्रता तथा अनुशासन के प्रति समन्वयवादी दृष्टिकोण अपनाने को प्रेरित करेगी। किसी भाव,विचार या सिद्धांत की मौलिकता अपनी जगह है परंतु महत्वपूर्ण बात यह है कि आज कितने बुद्धिजीवी या साहित्यकार एक पूर्व स्थापित सर्वहितकारी मौलिक सिद्धांत या विचार को आगे बढ़ने का कार्य कर रहे हैं। मेरे विचार से कोई भी राष्ट्रहितकारी/समाजहितकारी बात गद्य या काव्य सर्जन के माध्यम से आगे बढ़ाई जाती है तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए।अतः दीपक जी का यह प्रयास प्रशंसनीय और सराहनीय है। मुझे आशा है उनकी इस पुस्तक को समाज में भरपूर स्नेह प्राप्त होगा। पुस्तक और लेखक को समर्पित अपने इस दोहे के साथ बात समाप्त करता हूँ :
स्वतंत्रता के साथ कुछ,अनुशासन के ढंग।
सबको सिखलाने लगी,उड़ती हुई पतंग।।
--- ओंकार सिंह विवेक