October 29, 2025

पुस्तक परिचय/समीक्षा ('पयाम-ए-इश्क़' -- ग़ज़ल संग्रह)



बरेली के रस सिद्ध कवि/शायर स्मृतिशेष पं. देवी प्रसाद गौड़ 'मस्त' जी की 112वीं जयंती पर उनके सुपुत्र प्रसिद्ध कवि/शायर रणधीर प्रसाद गौड़ 'धीर' जी की नौवीं कृति 'पयाम -ए- इश्क़' का लोकार्पण 26/10/2025 को संपन्न हुआ।
उस समारोह में मुझे भी विशिष्ट अतिथि की हैसियत से पुस्तक के संबंध में अपने विचार रखने का अवसर प्राप्त हुआ।श्री धीर साहब की विमोचित कृति का सूक्ष्म परिचय आपके साथ साझा कर रहा हूँ।

      पुस्तक : पयाम-ए-इश्क़ (ग़ज़ल संग्रह) 
      शायर : रणधीर प्रसाद गौड़ 'धीर' 
      प्रकाशक: ओम प्रकाशन बरेली 
      प्रकाशन वर्ष - 2025 मूल्य रुo 250/-

बरेली के वरिष्ठ साहित्यकार रणधीर प्रसाद गौड़ धीर साहब हिन्दी और उर्दू दोनों ही भाषाओं पर समान अधिकार रखते हैं। कविता/शायरी का फ़न उन्हें अपने पिता स्मृतिशेष पंडित देवी प्रसाद गोद मस्त जी से विरासत में मिला है।अब तक आपकी अनेक काव्य कृतियां मंज़र-ए-आम पर आ चुकी हैं। धीर साहब का हाल ही में प्रकाशित हुआ ग़ज़ल संग्रह 'पयाम-ए-इश्क़' पढ़कर  फिर से उनकी फ़िक्र की बुलंद परवाज़ से रूबरू होने का मौका मिला। इससे पहले मुझे उनके ग़ज़ल संग्रह 'सलामे-इश्क़' तथा 'लावनी गीत' काव्य संग्रह पर भी अपने विचार साझा करने का अवसर प्राप्त हो चुका है। सलामे-इश्क़ में उनकी रिवायती और सूफियाना शायरी के तमाम दिलकश रंग बिखरे पड़े हैं। इसी तरह उनके लावणी गीतों में लोक साहित्य और संगीत को संरक्षित और संवर्धित करने की ललक साफ़ दिखाई देती है। आईए अब उनके नवीनतम दीवान ए ग़ज़ल 

'पयाम ए इश्क़' पर कुछ बात की जाए। यूं तो धीर साहब की अधिकांश ग़ज़लों में हमें ग़ज़ल का रिवायती रंग ही देखने को मिलता है परंतु उन्होंने सामाजिक सरोकारों, धर्म तथा अध्यात्म आदि महत्वपूर्ण विषयों को भी अपनी शायरी मौज़ू बनाया है। 


ग़ज़ल के रिवायती रंग को किस ख़ूबसूरती से ग़ज़ल में भरा जा सकता है, आप धीर जी के इन अशआर से बख़ूबी समझ सकते हैं :

    शर्म कैसी हिजाब फिर कैसा, 

    आप हैं मैं हूं और  ख़ल्वत है। 

     यूं तो होने को ज़माने में हसीं हैं लाखों, 

     मेरी नज़रों में मगर कोई परीज़ाद  नहीं। 

इस संग्रह का एक और शेर देखें जो उनकी फ़िक्र  के जदीद रंग को दर्शाता है :

      अहद ए हाज़िर में कुछ किया ही नहीं, 

      ख़्वाब   अगली  सदी  के  देखते   हैं। 

शायर के दिल में देशप्रेम/ वतन परस्ती का समुद्र कैसे हिलोरें मार रहा है, यह शेर देखें :

    'धीर' चाहत है वतन के नाम पर, 

    परचम ए हिंदोस्तां ऊंचा करूं।

हिंदी या उर्दू काव्य की ऐसी कोई  सिन्फ़  नहीं है जिसमें धीर साहब ने तबा'-आज़माई न की हो। गीत, मुक्तक, दोहे , ग़ज़ल, नात,रुबाई, ख़म्साअ आदि सभी में उन्होंने शानदार सृजन किया है। वह अपने एक मतले में कहते भी हैं :

    गीत कहूं या ग़ज़ल कहूं या ख़म्सा कोई सुनाऊं,

    जो  पसंद हो  मुझे  बता दो  वही राग में गाऊं।

कविता और शायरी वही कामयाब कही जाती है जो सीधे पाठक/ श्रोता के दिल में उतर जाए, जिसे सुनते ही सामने वाला आह या वाह कह उठे। उसे लगने लगे कि शायर ने तो उसके ही दिल की बात बयां कर दी है। धीर साहब की शायरी इन सब बातों पर खरी उतरती है। उनकी  ग़ज़लों के सभी शेर भाव और कथ्य के स्तर पर ध्यान खींचते हैं। इस ग़ज़ल संग्रह के कुछ और अशआर देखिए :

       आसमां  पर  हैं  घटाएं  और  रंगीं  शाम  है ,

       मौसम ए बरसात हर लम्हा छलकता जाम है। 

गौड़ साहब की शायरी में यदि हसीन मंज़र नुमायां हैं तो लोगों की बेरुखी और बेवफ़ाई के चलते स्वाभाविक उदासी की झलक भी है : 

   हमदर्द कोई आज हमारा नहीं रहा, 

   अब ज़िंदगी का कोई सहारा नहीं रहा।

ख़ुशियों के साथ ग़म भी आदमी की ज़िंदगी का अहम हिस्सा होते हैं अतः उन्हें स्वीकारने का जज़्बा भी होना चाहिए, धीर साहब का यह शेर देखें :

     मुआले ग़म से बग़ावत न की कभी मैंने,

      ग़म ए हयात को समझा है ज़िंदगी मैंने।

जला के दिल को मिटाई है तीरगी मैंने, 

रहे-वफ़ा को अता  की  है रौशनी मैंने। 

समय की पाबंदी के चलते धीर साहब के और अशआर मैं आपके साथ साझा नहीं कर पा रहा हूं परंतु संग्रह की सभी ग़ज़लों के शेरों में वह रवानी और तग़ज़्ज़ुल है कि किताब को एक बार पढ़ना शुरू कर दिया जाए तो उसे पूरी पढ़े बिना नहीं रहा जा सकता। अस्सी शानदार ग़ज़लों से सजा यह ग़ज़ल संग्रह पढनीय और संग्रहणीय है। हर ग़ज़ल के नीचे कठिन शब्दों के अर्थ लिखे गए हैं जो आम पाठक के लिए बहुत अच्छी बात है। अच्छी ग़ज़लों में दिलचस्पी रखने वाले साथियों से अनुरोध है कि इस ग़ज़ल संग्रह को मंगाकर अवश्य ही पढ़ें।

मैं ईश्वर से कामना करता हूं की आदरणीय रणधीर प्रसाद गौड़ धीर साहब को दीर्घायु करें ताकि भविष्य में हमें उनके और भी अच्छे ग़ज़ल संग्रह पढ़ने को मिलें। मैं उनके  लिए दुआ में शायर रईस अंसारी साहब का यह शेर पढ़ते हुए अपनी बात ख़त्म करता हूं :

        कोई दरख़्त कोई  साएबाँ रहे न रहे, 

        बुज़ुर्ग ज़िंदाँ रहें आसमाँ रहे न रहे। 

                      -- रईस अंसारी 

(द्वारा : ओंकार सिंह विवेक) 





       

October 20, 2025

दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं 🌹🌹🪔🪔


सभी स्नेही जनों को दीपोत्सव की 
हार्दिक शुभकामनाएं ! 
🌹🌹🙏🙏

दोहे--शुभ दीपावली : धनवर्षा : अमृत वर्षा

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      -- ©️ ओंकार सिंह विवेक


बना लिया  जिनको  यहाँ,निर्धनता ने  दास।

धनतेरस  पर हो भला,उनमें  क्या उल्लास।।


खील-बताशे-फुलझड़ी,दीपों  सजी   क़तार।

ले   आई   दीपावली,कितने   ही   उपहार।।


हो   जाये   संसार   में,निर्धन  भी   धनवान।

लक्ष्मी  माता   दीजिए,कुछ  ऐसा   वरदान।।  


हो   जाये    संसार   में,अँधियारे   की   हार।

भर  दे  यह  दीपावली,हर मन  में उजियार।। 


निर्धन  को  देें वस्त्र-धन,खील  और  मिष्ठान।  

उसके मुख  पर भी सजे,दीपों  सी मुस्कान।।   


दीवाली   के    दीप   हों,या   होली  के   रंग।

इनका आकर्षण  तभी,जब हों प्रियतम संग।। 

                    ©️ ----ओंकार सिंह विवेक


शुभ दीपावली 🪔🪔Happy Deepawali 🪔🪔

                             


October 19, 2025

किसी त्योहार के आने का मतलब


किसी त्योहार के आने का मतलब

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              ---ओंकार सिंह विवेक

त्योहारों का सीजन चल रहा है।कुछ त्योहार निकल चुके हैं कुछ प्रमुख त्योहार जैसे दीपावली और कार्तिक पूर्णिमा(गंगा स्नान ) आदि नज़दीक हैं।त्योहारी मौसम में एक तरफ तमाम तरह की व्यवसायिक गतिविधियाँ/हलचलें बढ़ती हैं तो दूसरी ओर मानव और प्रकृति के स्वभाव  में भी परिवर्तन देखने को मिलता है जिसे अस्वभाविक भी नहीं कहा जा सकता।समाज के अलग-अलग वर्गों के लिए त्योहारों के  अलग-अलग महत्व और उपयोग दिखाई देते हैं।


त्योहारों की दस्तक होते ही धनी वर्ग के घरों में कुछ अलग ही तरह की रौनक़ देखने को मिलती है।हफ़्तों पहले से ही धनी वर्ग के बच्चे और अन्य परिजन योजना बनाना शुरू कर देते हैं कि उन्हें क्या पहनना है,घर में कौन -कौन से व्यंजन बनने हैं ,किन -किन मेहमानों और दोस्तों को आमंत्रित करना है वगैरह वगैरह--।ऐसे घरों में चूँकि कोई आर्थिक विपन्नता नहीं होती  अतः वहाँ एक छुट्टी और मौज मस्ती  का माहौल त्योहारों के अवसर पर बन जाता है।दूसरी और निर्धन वर्ग की चिंता इस अवसर पर बढ़ जाती है।अभाव के कारण उस वर्ग के पास त्योहार पर नए कपड़ों या पकवानों के लिए इतने संसाधन नहीं होते  कि वे त्योहारों का आनंद उठा सकें।त्योहारों के दौरान उन्हें और ज़्यादा महनत करनी पड़ती है ताकि त्योहार मनाने हेतु कुछ ज़्यादा संसाधन जुटा सकें।

त्योहार के अवसर पर जब धनी वर्ग की मौज -मस्ती बढ़ती है तो मज़दूर और छोटा तबक़ा इस बात से ख़ुश होता है कि इस दौरान अमीरों की ख़रीदारी बढ़ने के कारण उन्हें और अधिक काम करने का मौक़ा मिलेगा जिससे कुछ अतिरिक्त आमदनी का जुगाड़ हो सकेगा।आम आदमी और मज़दूर तबक़ा त्योहारों के अवसर पर मज़दूरी और काम के अवसर तलाशता है जबकि अमीर तबक़ा मस्ती और आनंद के अवसर के रूप में त्योहार को देखता है।

हैं न कैसी विडंबना कि एक ही ईवेंट या घटना का समाज के अलग- अलग  तबक़ों पर अलग -अलग असर देखने को मिलता है।

                  --ओंकार सिंह विवेक


October 18, 2025

🪔🪔 शुभ दीपावली 🪔🪔



सभी साथियों को सपरिवार ज्योति पर्व सह पंच पर्व की अनेकानेक शुभकामनाएँ🌹🌹

दीपावली स्पेशल

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तम को नफ़रत के मिटाएँ कि अब दिवाली है, 

प्यार  के  दीप  जलाएँ  कि  अब  दिवाली है।


सख़्त  राहों  के  सफ़र  से  हैं जो भी घबराते,

हौसला  उनका  बढ़ाएँ  कि  अब  दिवाली है।


वक्त  गुज़रा  तो  कभी  लौटकर  न  आएगा,

वक्त  को  यूँ न   गँवाएँ  कि अब  दिवाली है।


पेड़-पौधे    ही   तो    पर्यावरण   बचाते   हैं,

इनको  हर  और लगाएँ कि अब दिवाली है।


आपसी  मेल-मुहब्बत   का   भाईचारे   का,

सब में  एहसास जगाएँ कि अब दिवाली है।

                             @ओंकार सिंह विवेक

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October 11, 2025

पुस्तक परिचय : गद्य पुस्तक 'उड़ती पतंग'


              गद्य पुस्तक : 'उड़ती पतंग'

             कृतिकार : दीपक गोस्वामी 'चिराग़' 

             प्रकाशक : डायमंड बुक्स, नई दिल्ली 

         प्रकाशन वर्ष : 2025  मूल्य : रुo 150/

       परिचय प्रदाता : ओंकार सिंह 'विवेक' 

साहित्यकार और शिक्षक दीपक गोस्वामी चिराग़ ने काव्य के साथ-साथ गद्य विधा में भी अपनी ऊँची उड़ान का परिचय देते हुए 'उड़ती पतंग' पुस्तक का  सृजन किया है।पुस्तक को पढ़कर इसके सार को जितना में समझ पाया वह आपके साथ साझा करना चाहता हूँ ताकि इस उपयोगी पुस्तक को पढ़ने के प्रति आपकी रुचि जागृत हो।

'उड़ती पतंग' जैसे रोचक शीर्षक वाली यह पुस्तक पाठक को धीरे-धीरे चिंतन की गहराई में उतार देती है।जब हम पतंग को आसमान में उड़ते हुए देखते हैं तो एक ओर वह अपने उन्मुक्त रूप से उड़ने का एहसास कराती है वहीं दूसरी ओर पतंग में बँधी हुई डोर पतंग को अनुशासन में रखने का कार्य करती है।यदि पतंग के उड़ने की स्वतंत्रता को डोर अनुशासन में न रखे तो पतंग आसमान में कदापि इतनी ऊँची न उड़ पाए।यही बात हमारे जीवन पर भी लागू होती है- व्यक्ति की जीवन रूपी पतंग भी यदि सामाजिक अनुशासन की सीमाओं में रहकर उड़ान भरे तभी उसकी उड़ान को सफल और सार्थक कहा जाएगा।लेखक ने 'उड़ती पतंग' के माध्यम से जीवन में स्वतंत्रता और अनुशासन के महत्व और उनके सामंजस्य को बड़े ही सहज और सुंदर ढंग से समझाया है। स्वतंत्रता क्या है और कब यह स्वछंदता का रूप ले लेती है, अनुशासन क्या है और अनुशासनहीनता की समस्या कैसे उत्पन्न होती है, इन सब बातों पर लेखक ने अपने अध्ययन और व्यवहारिक अनुभव के आधार पर विस्तार से प्रकाश डाला है।जीवन के लिए महत्वपूर्ण स्वतंत्रता और अनुशासन जैसे विषयों का विश्लेषण करते हुए पुस्तक में एक ओर तमाम पाश्चात्य दार्शनिकों जैसे एडम,रूसो और प्लेटो आदि को उद्धृत किया गया है तो दूसरी ओर भारतीय सभ्यता, संस्कृति और धार्मिक आस्थाओं के गौरव पतंजलि योग दर्शन,जैन दर्शन,बौद्ध दर्शन,श्रीमद्भागवत गीता तथा रामचरितमानस को उद्धृत करते हुए लेखक ने जीवन में स्वतंत्रता एवं अनुशासन के समन्वय पर बल दिया है। बीच-बीच में प्रेरक कथाओं तथा कविताओं के माध्यम से भी स्वतंत्रता और अनुशासन के बीच सामंजस्य की महत्ता को बड़े ही रोचक ढंग से समझाने का सार्थक प्रयास किया गया है। लेखक ने उदाहरण द्वारा बताया है की स्वतंत्रता प्राप्त करना मनुष्य की जन्मजात प्रवृत्ति है परंतु स्वतंत्रता की इस प्रवृत्ति को स्वच्छंदता में परिवर्तित होने से रोकने के लिए किस तरह अनुशासन की भावना का विकास किया जाना चाहिए इस पर भी प्रकाश डाला है। पुस्तक के लेखक दीपक गोस्वामी स्वयं एक शिक्षक हैं अतः वह भली भांति जानते हैं कि आज के विद्यार्थी ही कल के सजग राष्ट्रप्रहरी बनने वाले हैं अतः यह पुस्तक उन्होंने विद्यार्थी वर्ग में किस प्रकार स्वतंत्रता और अनुशासन की भावना का विकास हो, किस तरह इन दोनों में समन्वय स्थापित हो, इन विषयों पर ध्यान केंद्रित करते हुए ही लिखी है। पुस्तक के बाहरी पृष्ठ पर बने चित्रों तथा इसके शीर्षक 'उड़ती पतंग' से इसे विशुद्ध बाल साहित्य की पुस्तक समझने की भूल न की जाए। यह पुस्तक पढ़ना अध्यापकों एवं अभिभावकों के लिए भी बहुत आवश्यक है ताकि पहले वे स्वयं स्वतंत्रता,अनुशासन एवं इन दोनों के बीच समन्वय के सिद्धांतों को आत्मसात करके बच्चों को उसकी शिक्षा दे सकें।

 पुस्तक के उपसंहार में लेखक ने निष्कर्षतय: यही कहा है कि स्वतंत्रता तथा अनुशासन छात्र रूपी पतंग के लिए मुक्त आकाश और डोर की तरह हैं जिसमें एक के बिना दूसरा महत्वहीन है।अतः इन दोनों में तारतम्य बहुत आवश्यक  है। अंत में लेखक ने उच्च नैतिक व सामाजिक मूल्यों की सीख देने वाले धर्म ग्रंथ रामचरितमानस को स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल करने की पैरवी की है जो आज के दौर में नितांत आवश्यक भी है।लेखक ने विषय पर पूर्व प्रतिपादित सिद्धांतों को अपने चिंतन के आधार पर बहुत सरल भाषा में उदाहरणों सहित उद्धृत किया है।यह पुस्तक निश्चित ही पाठकों को अपने जीवन में स्वतंत्रता तथा अनुशासन के प्रति समन्वयवादी दृष्टिकोण अपनाने को प्रेरित करेगी। किसी भाव,विचार या सिद्धांत की मौलिकता अपनी जगह है परंतु महत्वपूर्ण बात यह है कि आज कितने बुद्धिजीवी या साहित्यकार एक पूर्व स्थापित सर्वहितकारी मौलिक सिद्धांत या विचार को आगे बढ़ने का कार्य कर रहे हैं। मेरे विचार से कोई भी राष्ट्रहितकारी/समाजहितकारी बात गद्य या काव्य सर्जन के माध्यम से आगे बढ़ाई जाती है तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए।अतः दीपक जी का यह प्रयास प्रशंसनीय और सराहनीय है। मुझे आशा है उनकी इस पुस्तक को समाज में भरपूर स्नेह प्राप्त होगा। पुस्तक और लेखक को समर्पित अपने इस दोहे के साथ बात समाप्त करता हूँ :   

       स्वतंत्रता के साथ कुछ,अनुशासन के ढंग। 

       सबको  सिखलाने लगी,उड़ती हुई पतंग।।

                          --- ओंकार सिंह विवेक 

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सभी स्नेही जनों को असीम सुप्रभात 🌹🌹🙏🙏 साथियो सोचा कि अपनी लोकप्रिय विधा ग़ज़ल में आज फिर अपने दिल के एहसासात आपके साथ साझा क...