April 21, 2025

दोहों की सौग़ात

मित्रो सादर प्रणाम 🌹🌹🙏🙏

आजकल कुछ पारिवारिक व्यस्तताएं अधिक रहीं जिस कारण ब्लॉग पर आपसे संवाद नहीं हो पाया।इन दिनों एक-दो साहित्यिक कार्यक्रमों में भी जाना हुआ।अच्छा अनुभव रहा। नया कहने का मन भी बना जिसके परिणामस्वरूप कुछ नई ग़ज़लें भी कह पाया जो जल्द ही ब्लॉग पर पोस्ट करूँगा।
फ़िलहाल कुछ दोहे आपकी प्रतिक्रिया हेतु प्रस्तुत हैं :

कुछ दोहे समीक्षार्थ
****************

जिसकी   बनती    हो   बने,सूबे  में  सरकार।
हर   दल   में   हैं   एक-दो,उनके   रिश्तेदार।।

घूमे     लंदन      टोकियो,रोम    और    रंगून।
अपने  घर-सा  पर  कहीं,पाया  नहीं सुकून।।

क्या होगा इससे अधिक,मूल्यों का अवसान।
बेच   रहे    हैं   आजकल,लोग  दीन-ईमान।।

खाना  खाकर   सेठ   जी,गए  चैन   से  लेट।
नौकर   धोता   ही   रहा,बर्तन   ख़ाली  पेट।।

करता  है  यह  प्रार्थना,मिलकर  सारा  गाँव।
बनी   रहे  यों  ही  सदा,बरगद  तेरी   छाँव।।
                            ©️ ओंकार सिंह विवेक

4 comments:

  1. सटीक समसामयिक समस्याओं की ओर इंगित करते दोहे

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    1. हार्दिक आभार आपका 🙏

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  2. सटीक समसामयिक समस्याओं की ओर इंगित करते दोहे

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