दोस्तो लीजिए हाज़िर है मेरी नई ग़ज़ल
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ग़ज़ल-ओंकार सिंह विवेक
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बदला रातों - रात उन्होंने पाला है ,
शायद जल्द इलक्शन आने वाला हैI
झूठे मंसब पाते हैं दरबारों में,
सच्चों की क़िस्मत में देश-निकाला है।
भूखे पेट जो सोते हैं फुटपाथों पर,
हमने उनका दर्द ग़ज़ल में ढाला है।
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यार ! उसूल परस्ती और सियासत में,
तुमने ख़ुद को किस मुश्किल में डाला है।
ज़ेहन में चलते रहते हैं ऊला-सानी,
हमने अच्छा शौक़ ग़ज़ल का पाला है।
नीचे तक पूरी इमदाद नहीं पहुँची,
ऊपर आख़िर कुछ तो गड़बड़झाला है।
घर में आख़िर बेटी के जज़्बात 'विवेक',
माँ से बेहतर कौन समझने वाला है।
----- @ओंकार सिंह विवेक
(मेरे शीघ्र प्रकाश्य ग़ज़ल संग्रह "कुछ मीठा कुछ खारा" से)
(चित्र : गूगल से साभार)
(भारत विकास परिषद रामपुर - उत्तर प्रदेश के सदस्यों को अपने ग़ज़ल संग्रह "दर्द का एहसास" की प्रतियाँ भेंट करते हुए)
------@ ओंकार सिंह विवेक
Bahia ghazal
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 19 अक्टूबर 2023 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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हार्दिक आभार सम्मिलित करने के लिए 🙏
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार।
Deletebahut umda rachna!
ReplyDeleteअतिशय आभार
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका 🙏🙏
Deleteबदला रातों - रात उन्होंने पाला है ,
ReplyDeleteशायद जल्द इलक्शन आने वाला हैI
यही तो हो रहा है आजकल देश में, इसी हेरा-फेरी का नाम लोकतंत्र है
जी
DeleteBahut sundar
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteबहुत सुंदर ग़ज़ल
ReplyDeleteअतिशय आभार 🙏🙏
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