नमस्कार मित्रो 🌹🌹🙏🙏
एक ग़ज़ल मेरे शीघ्र प्रकाश्य दूसरे ग़ज़ल संग्रह
"कुछ मीठा कुछ खारा से"
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ज़ोर शब का न कोई चलना है,
जल्द सूरज को अब निकलना है।
ये ही ठहरी गुलाब की क़िस्मत,
उसको ख़ारों के बीच पलना है।
ख़ुद को बदला नहीं ज़रा उसने,
और कहता है जग बदलना है।
दूध जितना उसे पिला दीजे,
साँप को ज़हर ही उगलना है।
काश!उनकी समझ में आ जाए,
धन कभी घूस का न फलना है।
तोड़ना है ग़ुरूर ज़ुल्मत का,
यूँ ही थोड़ी दिये को जलना है।
इतने तेवर दिखा न ऐ सूरज,
आख़िरश तो तुझे भी ढलना है।
@ ओंकार सिंह विवेक
(चित्र : गूगल से साभार)
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 4 अक्टूबर 2023 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteअथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
अतिशय आभार आपका 🙏
Deleteवाह
ReplyDeleteजोशी जी शुक्रिया
Deleteबेहतरीन ग़ज़ल
ReplyDeleteजी शुक्रिया 🙏
DeleteBahut sundar ghazal
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteशानदार ग़ज़ल आदरणीय!👍👍💐💐
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