पुस्तक परिचय/समीक्षा
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पुस्तक : 'नावक के तीर'(साझा दोहा संग्रह)
(हिंदुस्तानी भाषा अकादमी दिल्ली द्वारा तृतीय 'हिंदुस्तानी भाषा काव्य प्रतिभा सम्मान' योजना के अंतर्गत चयनित 51 दोहाकारों का साझा दोहा संग्रह)
संपादक : सुधाकर पाठक
प्रकाशक : इंडिया नेटबुक्स प्राइवेट लिमिटेड नोएडा
प्रकाशन वर्ष : 2025 पृष्ठ 120/ मूल्य रु 250/
सतसैया के दोहरे,ज्यों नावक के तीर।
देखन में छोटे लगें,घाव करें गंभीर।।
यह रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि बिहारी जी की कृति 'बिहारी सतसई' का प्रसिद्ध दोहा है।जिसका अर्थ है कि बिहारी जी की 'बिहारी सतसई' के दोहे देखने में भले ही छोटे हों लेकिन वे किसी नावक के तीर की तरह गंभीर और गहरे भाव रखते हैं अर्थात इन छोटे-छोटे दोहों में बड़ा अर्थ और ज्ञान भरा हुआ है। आज प्रसंगवश मुझे यह दोहा याद आ गया।क्योंकि मेरे हाथ में 'नावक के तीर' नामक ऐसा ही साझा दोहा संग्रह है जिसका एक-एक दोहा अपने आप में गहरे अर्थ और भाव समेटे हुए है।
इस दोहा संग्रह में संकलित दोहों से परिचय कराने से पहले मैं आपको हिंदुस्तानी भाषा अकादमी, जिसने यह पुस्तक छपवाई है, के बारे में थोड़ी जानकारी दे दूं। हिंदुस्तानी भाषा अकादमी दिल्ली एक स्ववित्तपोषित संस्था है जो हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के संवर्धन हेतु नि:स्वार्थ भाव से निरंतर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करती रहती है।अकादमी ने गीत एवं ग़ज़ल पर केंद्रित नि:शुल्क पुस्तकों के प्रकाशन के पश्चात तृतीय नि:शुल्क पुस्तक प्रकाशन योजना के अंतर्गत 'नावक के तीर' पुस्तक में देश भर के चयनित 51 दोहाकारों के दोहे प्रकाशित किए हैं। साहित्य संवर्धन के ऐसे महत्वपूर्ण कार्य सफलतापूर्वक निष्पादित करने पर मैं हिंदुस्तानी भाषा अकादमी दिल्ली के अध्यक्ष सुधाकर पाठक जी तथा उनकी टीम के निष्ठावान एवं समर्पित साथियों विनोद पाराशर, राजकुमार श्रेष्ठ तथा सुषमा भंडारी जी सहित अन्य सभी को हार्दिक बधाई देता हूं।
इस संकलन में 51 दोहाकार सम्मिलित किए गए हैं और सभी ने एक से बढ़कर एक दोहे सर्जित किए हैं। जी तो चाहता है कि सभी के कुछ न कुछ दोहे आपके साथ साझा करूं परंतु पुस्तक के इस संक्षिप्त परिचय या समीक्षा आलेख में ऐसा करना मेरे लिए संभव नहीं है। अतः कुछ साथियों के दोहे आपके साथ साझा करूंगा, उन्हीं से आपको इस दोहा संग्रह में संकलित दोहों के भाव तथा कथ्य की गहराई का अनुमान हो जाएगा।
दो पंक्तियों में बड़ी सी बड़ी बात कहने का जो जादू ग़ज़ल के एक शेर में होता है वही दोहे की दो पंक्तियों में भी होता है।यही कारण है कि अनेक प्रख्यात शायरों ने भी उत्कृष्ट दोहे कहे हैं। हिंदी के अनेक कवियों के दोहों के स्वतंत्र संग्रह प्रकाशित हुए हैं और यह सिलसिला आज भी जारी है। यह देखकर हम निर्विवाद रूप से कह सकते हैं की दोहा विधा का भविष्य उज्ज्वल है।आईए इस संकलन के कुछ दोहों पर नज़र डालते हैं :
चाहे तुम मेरा कहो, या अपनों का स्वार्थ।
मैं अंदर से बुद्ध हूं, ऊपर से सिद्धार्थ।।
संकलन में प्रारंभिक पृष्ठ पर छपने वाले तथा अकादमी की ओर से सम्मानित हुए युवा साहित्यकार राहुल शिवाय के इस दोहे में छिपे गहन अर्थ और भाव को समझ कर आप इस रचनाकार के चिंतन की गहराई का अनुमान सहज ही लगा सकते हैं। 'मैं अंदर से बुद्ध हूँ ' कहते ही दोहे में कैसा चमत्कार उत्पन्न हो गया है मुझे यह बताने की आवश्यकता नहीं है।
हिंदी उर्दू के यहां, जो हैं पैरोकार।
उनके घर की आबरू,अंग्रेजी अख़बार।।
हम भारतीय भाषाओं के विकास और संवर्धन के हिमायती बनते हैं परंतु घर और परिवार में अंग्रेजी भाषा के प्रयोग को बढ़ावा देते हैं। मनोज कामदेव जी ने अपने इस दोहे में व्यक्ति के इसी दोगलेपन को बड़ी ख़ूबसूरती के साथ उकेरा है।
हेरा फेरी ने किया यह कैसा विध्वंस।
बगुले घुसे क़तार में, मौन खड़े हैं हंस।।
आदरणीया प्रोमिला भारती जी ने इस दोहे में आज के दौर में बिगड़े हुए निज़ाम का क्या ख़ूबसूरत चित्रण किया है।
दुनिया भर में फिर रहे, यूं तो लाख फ़क़ीर।
मुश्किल है मिलना मगर,उनमें एक कबीर।।
श्री सुरेंद्र कुमार सैनी जी अपने इस दोहे में कहते हैं कि दुनिया में पीर-फ़क़ीरोंं की भरमार है परंतु उनमें कोई कबीर अर्थात सच्चा फ़क़ीर मिलना बहुत कठिन है।
उन हाथों को ही मिलें ,सदा जलन के घाव।
तेज़ हवा से दीप का,जो भी करें बचाव।।
अलका शर्मा जी अपने इस दोहे में कहती हैं कि हवा से दिये की सुरक्षा करने में हाथों का जलना तो स्वाभाविक ही है।
हरिराम पथिक जी का गांव से शहरों की तरफ तेज़ी से हो रहे पलायन की त्रासदी व्यक्त करता हुआ यह दोहा भी देखिए :
नगर पास होते रहे, गांव हो गए दूर।
नगरों में खोता रहा,'पथिक' गांव का नूर।।
मुझ नाचीज़ (ओंकार सिंह विवेक ) के दोहों को भी इस महत्वपूर्ण दोहा संग्रह में स्थान मिला है सो एक दोहा यह भी देखें :
पत्नी के शृंगार का,ले आए सामान।
मां के चश्मे का उन्हें,रहा नहीं कुछ ध्यान।।
मैं समझता हूँ कि मेरा यह दोहा भी नि:संदेह आपको कुछ चिंतन के लिए प्रेरित करेगा।
कविता ऐसी चाहिए, करे मनुज-कल्याण।
जो इस गुण से है रहित,वह कविता निष्प्राण।।
श्री बृजराज किशोर राहगीर जी का यह दोहा हमें बताता है कि यदि कविता में कोई सामाजिक या मानवीय पहलू न हो तो कविता भला किस काम की?
कहा पेट ने पीठ से,खुलकर बारंबार।
तेरे मेरे बीच में, रोटी की दीवार।।
श्री घमंडी लाल अग्रवाल जी का यह मार्मिक दोहा भी हमें गहन चिंतन के लिए प्रेरित करता है :
सुनता उसका बालमन,दिन में सौ-सौ बार।
ओ छोटू!उस मेज़ पर, जल्दी कपड़ा मार।।
श्री राजपाल सिंह गुलिया जी का यह दोहा एक बाल मज़दूर की विवशता का कैसा मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करता है।
ज़हर उगलने की लगी,इंसानों में होड़ ।
शनै-शनै जाने लगे,सांप बस्तियां छोड़।।
श्री धर्मपाल धर्म जी का यह दोहा आज के इंसान के दूषित/ज़हरीले सोच की पराकाष्ठा को बयां करता है।
ऐसे कितने ही मर्म को छूने वाले कथ्य और भाव से परिपूर्ण दोहों से यह दोहा संग्रह भरा पड़ा है। मैंने समय सीमा की बाध्यता के चलते कुछ ही दोहाकारों के दोहों का उल्लेख यहां किया है परंतु फिर भी यहाँ मैं संकलन के सभी 51 दोहाकारों के नाम का उल्लेख करना आवश्यक समझता हूँ। पुस्तक में छपे सभी 51 दोहाकारों के नाम कुछ इस प्रकार हैं राहुल शिवाय/ सुशीला शील स्वयं सिद्धा/ हरिराम पथिक/ संदीप मिश्रा सरस/ त्रिलोक सिंह ठकुरेला/ सत्यम भारती/गरिमा सक्सैना /डॉo रामनिवास मानव/ कमलेश व्यास कमल/ डॉ०तूलिका सेठ/ हलीम आईना/ अलका शर्मा/ ओंकार सिंह विवेक/ सुरेश कुशवाह तन्मय। विभा राज वैभवी/संदीप सृजन /सरिता गुप्ता/सूर्य प्रकाश मिश्रा/ रमा प्रवीण वर्मा/ डॉ० मनोज कामदेव/ संजय तन्हा/ कृष्ण सुकुमार/ शीतल बाजपेई/राघवेंद्र यादव/ नीलम सिंह/ अनंत आलोक/ डॉ० फ़हीम अहमद/ ब्रजराज किशोर राहगीर/ वृंदावन राय सरल/अमरपाल/ डॉ० लक्ष्मीनारायण पांडे/ किरण प्रभा/ विनयशील चतुर्वेदी/ रामकिशोर सौनकिया किशोर/डॉo मानिक विश्वकर्मा नवरंग/ डॉक्टर गीता पांडे अपराजिता/ व्यग्र पांडे/ डॉo मनोज अबोध/ डॉ० घमंडी लाल अग्रवाल/डॉ०नूतन शर्मा नवल/ प्रोमिला भारती/ सुरेंद्र कुमार सैनी/ राजपाल सिंह गुलिया/ डॉ० मधु प्रधान/ योगेंद्र वर्मा व्योम/ कुलदीप कौर दीप/प्रमोद मिश्रा हितैषी/ धर्मपाल धर्म/डॉ० चंद्रपाल सिंह यादव/अजय अज्ञात तथा मोहन द्विवेदी।
इस पुस्तक की भूमिका वरिष्ठ साहित्यकारों डॉo लक्ष्मी शंकर बाजपेई तथा देवेंद्र मांझी द्वारा लिखी गई है। पुस्तक की संकल्पना को मूर्त रूप देने में इन दोनों श्रेष्ठ साहित्यकारों की महती भूमिका की जितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम है। क्योंकि इन साहित्य मनीषियों के लिए लगभग 231 से अधिक रचनाकारों में से 51 दोहाकारों को चुनना कोई आसान कार्य नहीं रहा होगा।
इस पुस्तक में संकलित सभी दोहों की भाषा अत्यंत सरल तथा सहज है। हां,पुस्तक की प्रूफ रीडिंग को लेकर कुछ और सतर्कता बरती जानी चाहिए थी ऐसा मुझे लगता है। इस पुस्तक में संकलित भिन्न-भिन्न भाव के कलात्मक दोहों को पढ़कर नि:संदेह यह कहा जा सकता है की सभी दोहाकारों की लेखनी अत्यंत जागरूक है और अपने सृजन से समाज को सार्थक संदेश देने का सामर्थ्य रखती है।
मेरा आपसे आग्रह है कि दोहों की इस दस्तावेज़ी पुस्तक को इंडियानेट बुक्स प्राइवेट लिमिटेड नोएडा से मंगवा कर अवश्य ही पढ़ें।अंत में हिंदुस्तानी भाषा अकादमी के अध्यक्ष श्री सुधाकर पाठक जी तथा उनकी टीम को हिंदी काव्य के उन्नयन के उनके इस सार्थक प्रयास के लिए हृदय से साधुवाद देते हुए मैं अपनी बात समाप्त करता हूं।
--- ओंकार सिंह विवेक
साहित्यकार/समीक्षक/ कंटेंट राइटर/ टैक्स्ट ब्लॉगर