December 31, 2021

नए साल की पूर्व संध्या पर काव्य गोष्ठी

आज वर्ष 2021 के अंतिम दिन अर्थात वर्ष 2022 की पूर्व संध्या पर  उत्तर प्रदेश उद्योग व्यापार प्रतिनिधि मंडल की रामपुर इकाई के ज़िला अध्यक्ष श्री अनिल अग्रवाल जी के आवास पर रंगारंग काव्यगोष्ठी का आयोजन हुआ।गोष्ठी में व्यापारी बंधुओं तथा अन्य गणमान्य श्रोताओं ने कविगण की सामयिक रचनाओं का रसास्वादन करते हुए उनका भरपूर उत्साहवर्धन किया।कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश शासन के दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री श्री सूर्यप्रकाश पाल जी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।इस अवसर पर मैंने अपने ग़ज़ल संग्रह "दर्द का अहसास" की प्रति भी श्री सूर्यप्रकाश पाल जी को भेंट की।
कार्यक्रम का संचालन रामपुर के वरिष्ठ साहित्यकार श्री शिवकुमार चंदन जी द्वारा किया गया।कार्यक्रम समापन पर मेज़बान श्री अनिल अग्रवाल जी द्वारा कवियों को स्मृति चिन्ह देकर सभी का आभार व्यक्त किया गया।

मित्रों आप सब को नूतन वर्ष की शुभकामनाओं के साथ इस वर्ष की ब्लॉग पर अंतिम पोस्ट अपने पसंदीदा शायर जनाब ओमप्रकाश नदीम साहब के इस मुक्तक के साथ संपन्न करता हूँ--
न छाये ग़ुबार आइने पर किसी के,
फ़ज़ा में कहीं धूल उड़ने न पाए।
मुहब्बत के दीपक की लौ तेज़ कर दे,
नया साल ऐसी हवा ले के आए।
     --ओमप्रकाश नदीम
प्रस्तुतकर्ता--ओंकार सिंह विवेक
अवसर के कुछ छाया चित्र

नया साल : एक कामना

नया साल- एक कामना
       ---ओंकार सिंह विवेक
गए   साल  जैसा   नहीं   हाल  होगा,
तवक़्क़ो  है  अच्छा  नया साल होगा।

न  होगा  फ़क़त  फाइलों-काग़ज़ों  में,
हक़ीक़त में भी मुल्क ख़ुशहाल होगा।

बढ़ेगी  न  केवल  अमीरों  की  दौलत,
ग़रीबों  के हिस्से भी कुछ माल होगा।

रहेगा   सजा    आशियां  रौशनी   का,
घरौंदा   अँधेरे    का   पामाल   होगा।

जगत  में  सभी  और  देशों  से ऊँचा,
हमारे  वतन  का  ही बस भाल होगा।
           --ओंकार सिंह विवेक
            सर्वाधिकार सुरक्षित
चित्र-गूगल से साभार

चित्र--गूगल से साभार


December 30, 2021

सर्दी के नाम

अक्सर लोग कहते हैं कि आदमी को चैन कहाँ है? गर्मी में बहुत गर्मी की ,बरसात में बहुत बारिश की और सर्दी में  कड़क ठंड की शिकायत करता ही रहता है।अरे भाई! सर्दी में अगर सर्दी और गर्मी में अगर गर्मी न होगी तो फिर क्या होगा।बात ठीक भी लगती है कि भिन्न-भिन्न ऋतुओं के अपने भिन्न-भिन्न प्रभाव तो होंगे ही,इसमें शिकायत जैसी क्या बात है।लेकिन इस सत्य और दार्शनिकता से थोड़ा हटकर सोचने की भी ज़रूरत है।आदमी को बातचीत,मनोरंजन ,मस्ती और चुहलबाज़ी का भी तो कोई बहाना चाहिए कि नहीं।जीवन को ऊर्जावान और सक्रिय बनाए रखने के लिए ये सब भी तो ज़रूरी है।सोचिए चिलचिलाती धूप में
जब कोई पसीने से तरबतर होकर अपने दोस्तों से इस बात की शिकायत करता है कि भाई आज तो हद ही हो गई सूरज तो जैसे
भट्टी में झोंकने पर ही आमादा है तो बाक़ी लोग भी उसके डायलॉग से सहमत होते हैं,कसमसाते हैं,मुस्कुराते हैं और फिर बात से बात निकलकर परेशानी के आलम में भी हँसने-मुस्कुराने का बहाना खोज लेते हैं।ऐसा करना माहौल को हल्का-फुल्का रखने के लिए ज़रूरी भी होता है।यदि गर्मी की शिकायत करने वाले साथी को दार्शनिक अंदाज़ में यह कहते हुए टोक दिया जाए कि भाई तुम यह क्या शिकायत लेकर बैठ गए गर्मी में तो ऐसा ही होता है तो संवाद ही टूट जाएगा और मौज-मस्ती तथा मनोरंजन का जो मौक़ा बना है वह भी हाथ से जाता रहेगा।
अतः हर चीज़ को धीर-गंभीर होकर दार्शनिकता के चश्मे से न देखा जाए और शिकवे-शिकायतों और चुहलबाज़ी तथा गप्पबाज़ी
का भी कभी-कभी आनंद लिया जाए।
 मैं भी के आज के मौसम से शिकायत करते हुए अपने इस दोहे के साथ वाणी को विराम देता हूँ, नमस्कार🙏🙏

चित्र--गूगल से साभार



December 25, 2021

अटल जी की स्मृति में

अटल जी की स्मृति में कहे गए कुछ दोहे
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             ---©️  ओंकार सिंह विवेक
🌷
 नैतिक  मूल्यों  का किया ,सदा मान-सम्मान।
 दिया अटल जी ने नहीं ,ओछा कभी बयान।।
🌷
 विश्व मंच  पर  शान  से , अपना  सीना  तान।
 अटल बिहारी ने  किया, हिंदी  का यशगान।।
🌷
 राजनीति  के  मंच  पर , छोड़ अनोखी  छाप।
 सब के दिल में बस गए,अटल बिहारी आप।।
🌷
 चलकर पथ पर सत्य के,किया जगत में नाम।
 अटल बिहारी आपको,शत-शत बार प्रणाम।।                           ।।
🌷
              ------©️  ओंकार सिंह विवेक
चित्र--गूगल से साभार
चित्र--गूगल से साभार

December 21, 2021

अब एक भी दरख़्त पे पत्ता नहीं रहा

इस ग़ज़ल पर लोकप्रिय फेसबुक साहित्यिक पटल "ग़ज़लों की दुनिया" में शताधिक साहित्य मनीषियों के उत्साहजनक कमेंट्स
प्राप्त हुए सो आप सब के साथ ग़ज़ल साझा कर रहा हूँ🙏🙏
प्रतिक्रिया से अवश्य अवगत कराएँ

ग़ज़ल- ©️ ओंकार सिंह विवेक
                 कैसे    कहें    क़ुसूर    हवा    का    नहीं   रहा,
                 अब   एक  भी  दरख़्त   पे   पत्ता   नहीं   रहा।
                 ©️
                 इक  दूसरे  पे   जान   छिड़कते  थे   हर  घड़ी ,
                 अब  भाइयों   के  बीच  में   रिश्ता   नहीं रहा।
                 
                 लेना    तो   चाहता   था   वो  बच्चे  के   वास्ते,
                 लेकिन  बजट  में   उसके  खिलौना  नहीं  रहा।
                 ©️
                 बाक़ी  तो जस  का  तस  ही  रहा नाश्ते में सब,
                 बस   अब   हमारी   चाय   में  मीठा  नहीं रहा।
                  
                 झूठे   हैं   ऐसे  लोग  जो  कहते   हैं   रात-दिन,
                 अब   झूठ   के   बिना   तो  गुज़ारा  नहीं  रहा।
                   ©️
                 घर   की   ज़रूरतों   ने   बड़ा   कर  दिया उसे,
                 बचपन के  दौर   में  भी वो  बच्चा   नहीं  रहा।

                 हम बा-वफ़ा हैं आज भी कल की तरह 'विवेक',
                 ये   और    बात   उनको   भरोसा   नहीं   रहा।
                                      ©️ओंकार सिंह विवेक

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